इस साल देश के 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं – राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना, नागालैंड, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम। लेकिन सबसे ज्यादा सियासी हलचल राजस्थान में हैं, इसके कई कारण है। सबसे पहला कारण तो यह है कि पिछले कुछ समय से राज्य में सत्ता का ऐसा क्रम रहा है जिसमें एक बार भाजपा तो दूसरी बार कांग्रेस का राज रहा है । इस समय राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है , ऐसे में बीजेपी यह आस लगाए बैठी होगी कि अबकी बार उसकी बारी आ सकती है। दूसरा कारण यह भी है कि प्रदेश कांग्रेस में इस समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जो तनातनी है वो भी किसी से छिपी नहीं है और जगजाहिर है, ऐसे में दोनो ही पक्ष (गहलोत और पायलट) अपना चेहरा मजबूत करने में लगे है। और तीसरा कारण यह है कि इस बार मुकाबला भाजपा और कांग्रेस का तो होगा ही लेकिन कई अन्य पार्टियां जैसे आरएलपी, आप और कई अन्य निर्दलीय पार्टियां प्रदेश राजनीति में अपनी दखल बढ़ाना चाहेंगी क्योंकी प्रदेश की जनता कांग्रेस और भाजपा के अलावा तीसरे विकल्प की और भी रुख कर सकती है।
कौन मजबूत कौन कमजोर ?
बात करें पार्टियों के अंदरूनी विवाद की तो यह न केवल कांग्रेस में है बल्कि बीजेपी में भी काफी अंदरूनी दरार है और प्रदेश बीजेपी का हर नेता जनता के बीच अपनी सुंदर छवि बनाना चाहता है। हाल ही में धरने पर बैठे राज्यसभा सांसद किरोड़ीलाल मीना ने अपना ही पार्टी सतीश पूनिया पर निशाना साधते हुए कहा कि- पूनियां धरने पर एक बार भी मेरा साथ देने नही आए, जबकि यह धरना सरकार के खिलाफ युवाओं का आक्रोश है।
कटारिया को प्रदेश तो जोशी को पद छोड़ना पड़ा ?
इसी तरह गुलाबचंद कटारिया और वसुंधरा राजे के बीच की तल्खी भी किसी से छुपी नहीं हालांकि अब कटारिया राजस्थान से विदा होकर असम के राज्यपाल बन चुके है। ऐसे में कई नेता अपनी पद प्रतिष्ठा को बढ़ाने में लगे है। रही बात कांग्रेस की तो वहां का विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है और आए दिन कोई न कोई गुट विवादित बयान दे ही देता है जिसके कारण कांग्रेस की ही किरकिरी होती है। सितंबर में आलाकमान के खिलाफ अनुशासनहीनता के मामले में महेश जोशी को तो सजा मिल ही चुकी है वही अब इंतजार है धारीवाल और राठौर पर करवाई का । हालांकि महेश जोशी ने इस करवाई का स्वागत करते हुए कहा कि उन पर भी करवाई हो जो कांग्रेस को कमजोर करता है , इशारों ही इशारों में उन्होंने फिर सचिन पायलट को घेर लिया। हालांकि प्रदेश प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा ने कहा कि पार्टी के लिए जो गलत होगा उन सभी पर करवाई होगी।
क्या गहलोत का मास्टरस्ट्रोक काम कर पायेगा ?
हाल ही में अशोक गहलोत ने अपने कार्यकाल का अंतिम बजट पेश किया और यह बजट काफी चर्चा में भी रहा । हालांकि चर्चा यह भी है कि क्या बजट की सभी घोषणाएं इस साल पूरी हो पाएंगी? सरकार को तो अपने बजट पर इतना यकीन हैं कि वे इस बजट के दाम पर फिर से सरकार बनाने का दावा कर रहे है लेकिन जनता को यह बजट कितना रास आता है यह तो दिसंबर में ही पता चलेगा, जब प्रदेश में चुनाव होंगे।
चारों तरफ से घिरी सरकार , क्या विपक्ष करेगा प्रहार ?
राजस्थान में कई ऐसे मुद्दे है जिन पर भाजपा लगातार कांग्रेस को घेरती आई है । फिर चाहे वो प्रदेश की लाचार कानून व्यवस्था हो , युवाओं की भर्ती परिक्षाओं में धांधली हो , महंगाई हो या फिर बिजली पानी जैसे घरेलू मुद्दे हो । जनता भी कई बार अपनी समस्याओं के लिए सरकार के खिलाफ मुखर होती दिखाई दी है लेकिन कई ऐसे भी काम है जिनके लिए सरकार को जनता ने शाबासी दी जैसे कि चिरंजीवी योजना। हालांकि अभी भी राजस्थान अपने लक्ष्य से बहुत पीछे है।
कमल खिलेगा या दिखेगा हाथ ?
चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस दोनो के लिए ही यह चुनाव काफी अहम होंगे। क्योंकी अगले साल लोकसभा चुनाव है और दोनो पार्टियां अभी से ही लोकसभा चुनाव पर अपनी पकड़ मजबूत करती दिखाई देंगी। बात करें राजस्थान की तो भाजपा और कांग्रेस दोनो को ही अपनी आंतरिक कलह को जल्द ही सुलझाना होगा ताकि एकजुटता से इस चुनाव पर ध्यान दिया जा सके। बाकी किसका सिक्का चलता है और किसकी चवन्नी निकलती है खोटी यह तो समय ही बताएगा…